हर शाख़ पर उल्लू बैठा है !
- S.S.TEJASKUMAR
- Mar 8
- 3 min read
भारत में "हिंदूवादी" कहे जाने वाले लोग वास्तव में भारतीय दक्षिणपंथ का ही एक स्वरूप हैं। यह दक्षिणपंथी विचारधारा भारत में हिंदू धर्म, राष्ट्रीयता और सुरक्षा को प्राथमिकता देती है। लेकिन इसका वैश्विक संदर्भ क्या है? पश्चिमी देशों में दक्षिणपंथ की क्या स्थिति रही है? आधुनिक वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में आतंकवाद, जिहाद और साइबर युद्ध प्रमुख चिंताओं के रूप में उभर रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से जिहाद का एक धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ रहा है, लेकिन समय के साथ इसके अर्थ और उपयोग में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। इसी तरह, 21वीं सदी में साइबर युद्ध और डिजिटल आतंकवाद नई चुनौतियाँ पैदा कर रहे हैं। Global Threat Report 2024 के अनुसार, साइबर,व्यक्तिगत,और लोन वुल्फ हमले अब अधिक परिष्कृत और घातक होते जा रहे हैं, जिनमें धर्म-प्रायोजित हमले और हैकिंग समूहों की गतिविधियाँ शामिल हैं।
जिहाद: ऐतिहासिक और आधुनिक दृष्टिकोण
जिहाद का शाब्दिक अर्थ “युद्ध" है, जो आत्म-सुधार से लेकर सैन्य संघर्ष तक विस्तृत हो सकता है। प्रारंभिक इस्लामी परंपरा में, जिहाद का मुख्य उद्देश्य नैतिक और आध्यात्मिक विकास था। Concept of Jihad के अनुसार, यह विश्वास की रक्षा और धार्मिक मूल्यों के प्रचार का साधन था। हालांकि, 10वीं से 21वीं सदी में, जिहाद का उपयोग कई इस्लामी चरमपंथी संगठनों ने अपनी विचारधारा को वैध ठहराने के लिए किया।

Al-Qaeda, ISIS और अन्य संगठनों ने जिहाद को "पवित्र युद्ध" के रूप में प्रचारित किया। यह भी देखा गया है कि कट्टरपंथी संगठन अब डिजिटल प्रचार और साइबर भर्ती अभियानों का उपयोग कर रहे हैं। Global Threat Report 2024 में बताया गया है कि कट्टरपंथी संगठन सोशल मीडिया, डार्क वेब और एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन का उपयोग कर नई भर्ती कर रहे हैं और अपनी विचारधारा को फैला रहे हैं।
साइबर युद्ध और डिजिटल आतंकवाद
आधुनिक युग में, आतंकवाद केवल भौतिक संघर्ष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह साइबर हमलों, विचारधाराओ पर हमला,सांस्कृतिक हमला,मनोरंजन और लेखों के ज़रिए ब्रेन वाशिंग हमले के रूप में भी सामने आ रहा है . CrowdStrike 2024 Global Threat Report के अनुसार, साइबर हमलों में 75% की वृद्धि हुई है और बाक़ी अप्रत्यक्ष दिखने वाले हमले तो अनगिनत है । चीन,पाकिस्तान, मुस्लिम ब्रदरहुड ,पीएफआई जैसी शक्तियाँ साइबर जासूसी और डिजिटल हमलों में सक्रिय रूप से शामिल हैं। Cybercrime और Big Game Hunting (BGH) तकनीकों का उपयोग राष्ट्रों और कंपनियों के खिलाफ किया जा रहा है जैसा की हालही में हुए बांग्लादेश गृहयुद्ध में भी देखा जा सकता है ।
इस संदर्भ में, डिजिटल आतंकवाद को एक नए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। ISIS ,Al-Qaeda, ISIS खुरासान,जेकेएलएफ,पीएफआई Ansar al-Shari'a groups in Libya, Ansar al-Shari'a in Tunisia (AAS-T),Army of Islam (AOI),Harakat ul-Jihad-i-Islami/Bangladesh (HUJI-B),Harakat ul-Mujahidin (HUM),Hay'at Tahrir al-Sham (HTS)/al-Nusrah Front (ANF),Jaish-e Mohammed (JeM),Jama’at Nusrat al-Islam wal-Muslimin (JNIM),Hezbollah,Hizbul Mujahideen (HM),Islamic Jihad Union (IJU),Indian Mujahedeen (IM),Islamic Movement of Uzbekistan (IMU),Islamic Revolutionary Guard Corps (IRGC)/Qods Force,Al-Aqsa Martyrs Brigade (AAMB),al-MourabitounHarakat Shabaab al-Mujahidin (HSM),Ansar al-Dine (AAD),Jemaah Islamiya (JI),Lashkar i Jhangvi (LJ),Lashkar-e Tayyiba (LeT),Palestine Islamic Jihad (PIJ),Palestine Liberation Front – Abu Abbas Faction,Tehrik-e-Taliban Pakistan. जैसे संगठनों ने सोशल मीडिया और डार्क वेब का उपयोग करके कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने में सफलता पाई है। Global Threat Report 2024 के अनुसार, 2023 में साइबर आतंकवादी हमलों में 60% वृद्धि देखी गई। कट्टरपंथी समूहों ने ऑनलाइन भर्ती, धन उगाहने और फर्जी समाचार फैलाने के लिए उन्नत तकनीकों को अपनाया है।

मीडिया और आतंकवाद: प्रभाव और प्रचार रणनीतियाँ
मीडिया आतंकवाद की रणनीतियों का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है। Concept of Jihad दस्तावेज़ बताता है कि मीडिया को धार्मिक युद्ध के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया है। Council of Europe (2021) के अनुसार, अत्यधिक मीडिया कवरेज से आतंकवादी संगठनों को अप्रत्यक्ष लाभ मिलता है। उदाहरण के लिए, 26/11 मुंबई हमला (2008) के दौरान, आतंकवादियों ने भारतीय मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग का उपयोग अपनी रणनीतियाँ बदलने के लिए किया। इसी प्रकार, ISIS का Dabiq और Al-Qaeda का Inspire Magazine मुख्य प्रचार माध्यम बने, जिससे युवा पीढ़ी को प्रभावित करने की कोशिश की गई। वीडियो गेम, डिजिटल मैसेजिंग और सोशल मीडिया के माध्यम से युवा पीढ़ी को कट्टरपंथी बनाया गया। इसको और आगे गहराई से देखते है
आधुनिक आतंकवाद को "मीडिया आतंकवाद" भी कहा जाता है। आतंकवादी संगठनों ने मीडिया की शक्ति को पहचान लिया है और इसे अपने प्रचार और भर्ती अभियानों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। Council of Europe की रिपोर्ट (2005) के अनुसार, आतंकवादी हमलों की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मीडिया का उपयोग करके भय और अस्थिरता फैलाना है। मीडिया द्वारा की गई व्यापक रिपोर्टिंग से आतंकवादियों को मुफ्त में प्रचार मिलने का अवसर मिलता है, जिससे उनके उद्देश्यों को अधिक बल मिलता है। Global Terrorism Database (GTD, 2023) बताता है कि जिन देशों में मीडिया कवरेज अधिक होता है, वहाँ आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। मीडिया का प्रभाव केवल सूचना तक सीमित नहीं है बल्कि यह लोगों की सोच और नीतिगत निर्णयों को भी प्रभावित करता है।
मीडिया और आतंकवाद के बीच संबंध
आतंकवादी संगठन मीडिया को एक शक्तिशाली हथियार के रूप में उपयोग कर रहे हैं। Oxford Internet Institute (2021) के अनुसार, ISIS और अल-कायदा जैसे संगठनों ने डिजिटल मीडिया का उपयोग करके लाखों लोगों तक अपनी विचारधारा पहुँचाई। तालिबान ने BBC और CNN के इंटरव्यू को अपने राजनीतिक प्रचार के लिए इस्तेमाल किया। RAND Corporation (2022) के अनुसार, सोशल मीडिया का उपयोग बड़े पैमाने पर आतंकवादी संगठनों द्वारा भर्ती अभियानों के लिए किया जा रहा है। आतंकी संगठनों की रणनीति केवल हिंसा तक सीमित नहीं होती, बल्कि वे मीडिया में अपनी छवि को गढ़ने और जनमत को प्रभावित करने के लिए योजनाबद्ध रूप से प्रचार करते हैं।
मीडिया की मनोवैज्ञानिक भूमिका
मीडिया आतंकवाद के प्रभाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। American Psychological Association (APA, 2020) की रिपोर्ट के अनुसार, लगातार आतंकवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग से PTSD (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) और जनसामान्य में मानसिक तनाव बढ़ता है। Stanford University Study (2018) में बताया गया कि मीडिया में आतंकवादी घटनाओं की ज्यादा कवरेज से कट्टरपंथ बढ़ता है। Harvard University (2019) की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रेमिंग थ्योरी के अनुसार, मीडिया जिस तरीके से आतंकवाद को प्रस्तुत करता है, वह लोगों की धारणा को गहराई से प्रभावित करता है और धार्मिक समूहों की छवि को विकृत कर सकता है, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है।
वैश्विक और भारतीय संदर्भ में मीडिया और आतंकवाद
वैश्विक आतंकवादी घटनाओं में मीडिया की भूमिका
9/11 हमले (2001) के दौरान, CNN और अन्य वैश्विक मीडिया ने इस हमले की लगातार लाइव कवरेज की, जिससे अल-कायदा की प्रचार रणनीति को बल मिला (Council on Foreign Relations, 2003)। क्राइस्टचर्च हमला (2019, न्यूजीलैंड) के दौरान हमलावर ने हमले को लाइव स्ट्रीम किया, जिससे कट्टरपंथियों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ी (New Zealand Royal Commission Report, 2020)।
भारत में मीडिया की भूमिका
भारत में भी मीडिया ने आतंकवादी घटनाओं को व्यापक रूप से कवर किया है, लेकिन कई बार यह कवरेज आतंकवादियों के लिए एक प्रचार माध्यम बन जाता है। 26/11 मुंबई हमले (2008) में आतंकवादियों ने भारतीय मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग का उपयोग अपनी रणनीतियों को समायोजित करने के लिए किया (National Security Council Report, 2009)। पुलवामा हमला (2019) के बाद, सोशल मीडिया पर पाकिस्तान प्रायोजित फेक न्यूज़ और उग्रवाद को बढ़ावा मिला, जिससे सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की कोशिशें की गईं (Cyber Peace Foundation, 2020)।
मीडिया नैतिकता और आतंकवाद
मीडिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए, लेकिन इसके लिए नैतिक जिम्मेदारी भी आवश्यक है। UNESCO रिपोर्ट (2021) के अनुसार, मीडिया को आतंकवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए और सनसनीखेज प्रस्तुतिकरण से बचना चाहिए। Council of Europe (2005) की गाइडलाइन के अनुसार, मीडिया को आतंकवाद के प्रचार का माध्यम बनने से बचना चाहिए।
मीडिया नियमन और सरकारी हस्तक्षेप
अमेरिका ने USA PATRIOT Act (2001) के तहत आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मीडिया की निगरानी बढ़ाई। यूरोपीय संघ ने EU साइबर सिक्योरिटी कानून (2022) के तहत सोशल मीडिया पर आतंकवादी प्रचार को रोकने के लिए AI-आधारित फिल्टर लागू किए हैं। भारत में IT अधिनियम (Information Technology Act, 2000) में 2022 के संशोधन के बाद, आतंकवादी सामग्री प्रसारित करने वाले ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर सख्त निगरानी रखी जा रही थी पर एनजीओ और विधिज्ञाता द्वारा स्वतंत्रता और उदारवाद की अंधी दोड़ ने हमारी आनेवाली पीढ़ियो के लिए एब्सोल्यूट ख़तरे का निर्माण किया है ।सरकारी कामो में हस्तक्षेप करना मानो आजकल पुरस्कार की परंपरा बन गया है ।
भारत में मीडिया की मनोवैज्ञानिक भूमिका और सुरक्षा चिंताएँ
मीडिया के प्रभाव को लेकर भारत में कई अध्ययन किए गए हैं। Indian Psychological Society (2021) के अनुसार, लगातार आतंकवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग से PTSD और जनसामान्य में मानसिक तनाव बढ़ता है। Delhi University Study (2022) में बताया गया कि मीडिया में आतंकवादी घटनाओं में अंतकवादीओ को बचाने के प्रयास को ज्यादा कवरेज से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता है जैसे की बाटला हाउस की घटना के बाद हुआ था Jawaharlal Nehru University (2023) के अनुसार, भारत में उग्रवादी घटनाओं को मीडिया में सनसनीखेज़ तरीके से दिखाना आतंकवादियों के प्रचार को बढ़ावा दे सकता है।
भारत में नीतिगत समाधान और रणनीतियाँ
भारत में मीडिया और राष्ट्रीय सुरक्षा में संतुलन आवश्यक है ताकि आतंकवाद का प्रचार रोका जा सके लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता भी बनी रहे। Institute for Defense Studies and Analyses (IDSA, 2022) ने सुझाव दिया कि मीडिया संस्थानों को आतंकवाद के प्रचार का माध्यम बनने से रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश लागू किए जाएँ। भारत सरकार को AI और बिग डेटा का उपयोग करना चाहिए एवं सख़्त सोशल मीडिया निगरानी क़ानून की आवश्यकता है । IIT Delhi (2023) के अनुसार, AI आधारित मॉनिटरिंग से भारत में आतंकवादी सामग्री को हटाने में 75% तक सुधार हुआ।
शरणार्थी नीतियों
दक्षिणपंथ और राष्ट्रवाद की विचारधारा अक्सर शरणार्थी नीतियों के विरोध से जुड़ी रही है। फ्रांस के दक्षिणपंथी ईसाइयों ने जर्मन ईसाइयों को भी अपने देश में शरण देने का विरोध किया क्योंकि उन्हें यह डर था कि शरणार्थियों के रूप में राष्ट्र-विरोधी तत्व भी प्रवेश कर सकते हैं। (स्रोत: Global Migration Review, 2022) यह प्रवृत्ति कई देशों में देखी गई है, जहाँ दक्षिणपंथी सरकारें शरणार्थियों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश करती हैं। इसी संदर्भ में, भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थियों का मामला भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

भारत में कई वामपंथी और न्यायिक व्यवस्था के कुछ समूह मानते हैं कि मुस्लिमों को धर्म के आधार पर शरण दी जानी चाहिए। (स्रोत: India’s Citizenship Amendment Act Report, 2020) लेकिन यदि इनमें कुछ तत्व अलगाववादी और आतंकी विचारधारा को बढ़ावा देने लगे तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या यह संभव है कि 25-30 वर्षों बाद ये लोग किसी उच्च संस्थान में प्रोफेसर बनकर राष्ट्रविरोधी विचारधारा फैलाएँ? (स्रोत: Political Extremism Report, 2023) यह चिंता केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि वैश्विक सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

बंगाल में वामपंथ का प्रभाव और उसकी जड़ें
बंगाल का सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास समृद्ध रहा है, लेकिन 1917 की रूसी क्रांति के बाद इसमें वामपंथ का प्रभाव बढ़ गया। बंगाल साहित्य में 90% से अधिक पुस्तकें वामपंथ से प्रभावित हैं। (स्रोत: Leftist Literature Analysis in Bengal, 2023) वामपंथी प्रदर्शन और आंदोलन बंगाल में सामाजिक संरचना का हिस्सा बन चुके हैं। (स्रोत: Political Ideologies in Indian States, 2021) वामपंथी विचारधारा का प्रभाव केवल राजनीतिक आंदोलनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह अकादमिक संस्थानों में भी व्यापक रूप से फैल चुका है, जिससे राष्ट्रवादी विचारधारा और सामाजिक संरचना पर प्रभाव पड़ा है।
लोन वुल्फ आतंकवाद और भारत की सुरक्षा चुनौतियाँ
लोन वुल्फ आतंकवाद वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। Lone Wolf and Youth Terrorism रिपोर्ट के अनुसार, लोन वुल्फ आतंकवाद में युवा पीढ़ी की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। (स्रोत: Global Terrorism Index, 2024) इंटरनेट और सोशल मीडिया ने अलगाववादी विचारधारा को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत में कई युवा आतंकवादी संगठनों द्वारा ऑनलाइन भर्ती किए जा रहे हैं। (स्रोत: Cyber Radicalization Study, 2023) भारत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें आतंकवादी संगठनों ने सोशल मीडिया का उपयोग करके युवाओं को कट्टरपंथी बनाया और आतंकी गतिविधियों में शामिल किया।
भारत और विश्व में लोन वुल्फ हमले: एक विस्तृत अध्ययन
भारत में लोन वुल्फ आतंकवाद के कई उदाहरण सामने आए हैं। 2019 में पुलवामा हमला हुआ, जिसमें आत्मघाती हमलावर ने CRPF के काफिले पर हमला किया। (स्रोत: Indian Intelligence Report, 2019) 2018 में मुंबई में ISIS से प्रेरित एक अकेले हमलावर को गिरफ्तार किया गया। (स्रोत: National Counter Terrorism Report, 2018) 2021 में कश्मीर में कई छोटे लोन वुल्फ हमले दर्ज किए गए। (स्रोत: Kashmir Security Review, 2021) यह संभावना भी जताई जाती है कि महाकुंभ और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ इसी से जुड़ी हो सकती है।


विश्व स्तर पर भी लोन वुल्फ आतंकवाद एक प्रमुख खतरा बना हुआ है। 2017 में अमेरिका के लास वेगास में हुए हमले में अकेले हमलावर ने 58 लोगों की हत्या कर दी। (स्रोत: US Mass Shooting Analysis, 2017) 2019 में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में मस्जिद हमले में अकेले आतंकवादी ने 51 लोगों की हत्या कर दी। (स्रोत: Extremism in Oceania, 2020) 2020 में फ्रांस के नीस शहर में एक अकेले आतंकवादी ने चर्च पर हमला किया। (स्रोत: European Terror Trends, 2021) यह दर्शाता है कि लोन वुल्फ आतंकवाद केवल एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संकट बन चुका है।
रोहिंग्या आतंकवाद और सुरक्षा चिंताएँ
भारत में अवैध रूप से घुसे रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय पर कई सुरक्षा एजेंसियों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। (स्रोत: Rohingya Threat Assessment, 2023) दिल्ली पुलिस ने वसंत कुंज में एक बड़े पैमाने पर सत्यापन अभियान (Massive Verification Drive) चलाया है ताकि अवैध रूप से रह रहे लोगों की पहचान की जा सके। भारत में रोहिंग्या आतंकी संगठनों से जुड़े होने के मामलों में वृद्धि हुई है। (स्रोत: South Asia Security Review, 2023) यह खतरा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि कई रिपोर्टों में यह पाया गया है कि रोहिंग्या समुदाय के कुछ लोग आतंकी संगठनों से जुड़े हुए हैं और भारत में अस्थिरता पैदा कर सकते हैं।
संभावित समाधान और नीति सुझाव
भारत की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कुछ प्रमुख नीतिगत कदम उठाए जा सकते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए अवैध शरणार्थियों की पहचान के लिए बायोमेट्रिक प्रणाली और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित डेटा ट्रैकिंग अनिवार्य होनी चाहिए। (स्रोत: Indian National Security Report, 2023) शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जाए ताकि वामपंथी विचारधारा के प्रभाव को संतुलित किया जा सके और राष्ट्रवादी शिक्षा पाठ्यक्रम को बढ़ावा दिया जाए। साइबर निगरानी बढ़ाई जानी चाहिए ताकि लोन वुल्फ आतंकवाद रोकने के लिए सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स की निगरानी अनिवार्य हो। (स्रोत: Cyber Intelligence Report, 2023) भारत को अपनी साइबर सुरक्षा को भी मजबूत करना होगा और डिजिटल आतंकवाद के खिलाफ कठोर नीति अपनानी होगी।
Comments